मोघमन्नं विन्दते अप्रचेता: सत्यं ब्रवीमि वध इत्स तस्य। नार्यमणं पुष्यति नो सखायं केवलाघो भवित केवलादी।। ऋग्वेद १०/११७/६ वह व्यक्ति पापी है, जो न तो देवों को भोजन देता है एवं न अपने मित्रों को। केवल अपना ही पेट भरता है। भोजन बांट कर खायें