Nojoto: Largest Storytelling Platform

आहिस्ता आहिस्ता दुरिया बढ़ती जा रही है रूक्मणी भी

आहिस्ता आहिस्ता दुरिया बढ़ती जा रही है
 रूक्मणी भी कृष्णा से बिछड़ती जा रही हैं
मनो के मेल थोड़े - थोड़े  डगमगाने लगे  हैं 
क्योंकि बर्दास्त की नींव  हिलती जा रही हैं 

जिंदगी की गाड़ी तेज रफ्तार ले रही हैं
कुछ को उतार तो कुछ को चढ़ा रही हैं
दो मुसाफ़िर हम भी हैं इस गाड़ी में पर
हमारी मंजिल से कही दूर ले जा रही हैं

सपनों को हकीकत का आकार दे रही हैं 
जो सोचा था उसके विपरित जा रही हैं
उम्मीद है लौट आएंगी हमारी बाहों में पर
वो तो "नरेश" की आंखों से ओझल होती जा रहीं हैं

©Naresh K Chouhan
  #Connections