White पल्लव की डायरी घोसले जानवरो जैसे पिंजरो जैसे फ्लैटों में मानव का अब मकान है रहता जिसमे हवा पानी का अभाव घुटन भरी शाम है ना सूरज ना चाँद का दीदार है अगर जिंदगी की गुजर बसर के लिये कुछ टुकड़े लालच के फेककर गाँवो से होता पलायन है सजे है शहर भीडो से, तरक्की के नाम से मगर हो चला गुमशुदा आदमी यहाँ अपनी पहचान से प्रवीण जैन पल्लव ©Praveen Jain "पल्लव" #alone_sad_shayri रहता जिसमे हवा पानी का अभाव है