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बिखरीं रातों में बिखरें हैं हम, नज़ारे हैं सोये नज़र

बिखरीं रातों में
बिखरें हैं हम,
नज़ारे हैं सोये
नज़रे हैं नम,
लम्हों को समेटे
खुशियाँ हैं कम,
बिखरीं रातों में
बिखरे है हम।

©Kumud Dhiraj kumar
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