खामोशी से सब का वहन कर गई,, होठों को सिल लिया, थोड़ा नेत्रों को नम किया,, बंध कर तेरे साथ की डोर में न चाहते हुए भी सब सहन कर गई।। मोहक थी मुस्कान मेरी,, चंचलता थी पहचान मेरी,,, बंध कर तेरे साथ की डोर में अपमान से हुई पहचान मेरी।। सात समंदर पार कर गई तेरे संग के लिए विरह से तर गई,,, साथ मिला जब तेरा देख स्थिति मेरी अंतरात्मा भी जाने क्यों डर गई।। खुद से खुद का द्वंद हैं,,, क्यों स्वनिर्णय पर प्रतिबंध हैं।। बंध कर तेरे साथ की डोर में खुद की इच्छाएं भी पावंध हैं।। दीर्घायु सा हो गया दिवस,, जैसे गर्मी के मौसम में बढ़ती उमस,,, घुटन सी होती हर स्वास के साथ,,, जैसे नेत्रों में बढ़ी तपिश।।। बंध कर तेरे साथ की डोर में जैसे जीवन में भर ली खलिश।।। क्या नारी का जीवन साथी के ओत प्रोत हैं,,, उसका नहीं स्वयं का कुछ भी,, नारी के हर पल का निर्णयी वही,,, वही उसके जीवन का स्त्रोत हैं।।। ©KAJAL The poetry writer #poetry #kavita #kuchrangpyarkeaisebhi #kadwiaacchai #tmkabaoge #hateofmoment #fewfeelings