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काव्य संख्या-199 =============== खंडहर, जो कभी घर

 काव्य संख्या-199
===============
खंडहर, जो कभी घर था
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उन खंडहरों को देखो, 
जिसे कभी घर कहा जाता था, 
जिसमें कभी बच्चों की किलकारियाँ गूँजती थी, 
हँसी-ठहाके की आवाज़े आती थीं,
 काव्य संख्या-199
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खंडहर, जो कभी घर था
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उन खंडहरों को देखो, 
जिसे कभी घर कहा जाता था, 
जिसमें कभी बच्चों की किलकारियाँ गूँजती थी, 
हँसी-ठहाके की आवाज़े आती थीं,