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चाल समझ रहा था फेंके हर पत्ते की , मन बदल रहा था स

चाल समझ रहा था फेंके हर पत्ते की ,
मन बदल रहा था सुनें हर किस्से की ,
टूट न जाये पीढ़ियों से बधा हुआ रिश्ता ,
इसलिए हार रहा था दाँव केवल अपने हिस्से की

©Spandey #Life#myshayri#follow me for new shayari
चाल समझ रहा था फेंके हर पत्ते की ,
मन बदल रहा था सुनें हर किस्से की ,
टूट न जाये पीढ़ियों से बधा हुआ रिश्ता ,
इसलिए हार रहा था दाँव केवल अपने हिस्से की

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