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दरिया कि "भीगी" रेत को क्या पता की कितना दर्द समे

दरिया कि "भीगी"  रेत को क्या पता की कितना दर्द समेटा है उन किसानों ने ,"बंजर" ज़मी करती  है जिनके आसुओं का बयां !कर्ज मे डूबे कितने मासूम चहरे, कभी सूखा,   तो कभी बाढ़ तो कभी कुदरत ने जला डाली लहलहाती फसलें !दरिया की "भीगी "रेत को क्या पता  कितने बेरोजगारो ने पन्नों पर कलम से लिक्खी अपनी तकदीर लेकिन फिर भी बढ़ती बेरोजगारी ने कितनों - कितनों  को  सुला दिया मौत के.    "आहोश" में!

©Dinesh Kashyap #banjar

#banjar

#banjbar

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दरिया कि "भीगी"  रेत को क्या पता की कितना दर्द समेटा है उन किसानों ने ,"बंजर" ज़मी करती  है जिनके आसुओं का बयां !कर्ज मे डूबे कितने मासूम चहरे, कभी सूखा,   तो कभी बाढ़ तो कभी कुदरत ने जला डाली लहलहाती फसलें !दरिया की "भीगी "रेत को क्या पता  कितने बेरोजगारो ने पन्नों पर कलम से लिक्खी अपनी तकदीर लेकिन फिर भी बढ़ती बेरोजगारी ने कितनों - कितनों  को  सुला दिया मौत के.    "आहोश" में!

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