ताउम्र किसी सुकून ने कभी शिरकत नहीं की, उस रात के बाद, जब तू मुझे रुला के गया,, ये हवाओं से गुफ्तगू आखिर कब तक रहेगी,, कि तूफान पहले हीं, मेरा हुजरा उड़ा के गया,, जो आग दरख्तों में लगी है तो कसूर किसका है, जरूर सख़्त धूप कोई हरा दरिया बुझा के गया,, यूं जलता तो लकड़ियों को भी नहीं छोड़ते है कहीं, जिस कदर ये आतीशे इश्क मुझे जला के गया,, ©Dr.Anupam Singh Amethia शिरकत= Attand गुफ्तगू= Conversation हुजरा= Hut दरख़्त= Tree आतिश= Fire #dranupamsingh