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ताउम्र किसी सुकून ने कभी शिरकत नहीं की, उस रात के

ताउम्र किसी सुकून ने कभी शिरकत नहीं की,
उस रात के बाद, जब तू मुझे रुला के गया,,
ये हवाओं से गुफ्तगू आखिर कब तक रहेगी,,
कि तूफान पहले हीं, मेरा हुजरा उड़ा के गया,,
जो आग दरख्तों में लगी है तो कसूर किसका है,
जरूर सख़्त धूप कोई हरा दरिया बुझा के गया,,
यूं जलता तो लकड़ियों को भी नहीं छोड़ते है कहीं,
जिस कदर ये आतीशे इश्क मुझे जला के गया,,

©Dr.Anupam Singh Amethia शिरकत= Attand
गुफ्तगू= Conversation
हुजरा= Hut
दरख़्त= Tree
आतिश= Fire
#dranupamsingh
ताउम्र किसी सुकून ने कभी शिरकत नहीं की,
उस रात के बाद, जब तू मुझे रुला के गया,,
ये हवाओं से गुफ्तगू आखिर कब तक रहेगी,,
कि तूफान पहले हीं, मेरा हुजरा उड़ा के गया,,
जो आग दरख्तों में लगी है तो कसूर किसका है,
जरूर सख़्त धूप कोई हरा दरिया बुझा के गया,,
यूं जलता तो लकड़ियों को भी नहीं छोड़ते है कहीं,
जिस कदर ये आतीशे इश्क मुझे जला के गया,,

©Dr.Anupam Singh Amethia शिरकत= Attand
गुफ्तगू= Conversation
हुजरा= Hut
दरख़्त= Tree
आतिश= Fire
#dranupamsingh
anupamsinghameth9788

चंद

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