याद सब-कुछ रहता है, सब-कुछ भूल भी जाता हूं, मैं रिश्ते निभाने के लिए, मैं कितनी दफा टूट भी जाता हूं, हंस कर बातें करता हूं गैरों से भी, मैं अपनों से बहुत जल्दी रूठ जाता हूं, स्वभाव मेरा मुझे खुद नहीं समझ आता, कभी-कभी बेवजह ही सबसे दूर जाता हूं, रखता हूं फासले कि ऐसे मुकरता हूं, मैं देर तक आईने में ख़ुद को निहारता हूं, अश्क बहता हूं फिर थम जाता हूं, मैं दर्द में भी एक अजीब-सा आराम पाता हूं।— % & याद सब-कुछ रहता है, सब-कुछ भूल भी जाता हूं, मैं रिश्ते निभाने के लिए, मैं कितनी दफा टूट भी जाता हूं, हंस कर बातें करता हूं गैरों से भी, मैं अपनों से बहुत जल्दी रूठ जाता हूं,