जीवन झोंका चूल्हे में, चक्की के पाटों बीच फँसी, सामंजस्य माँ का देखो, मुश्किल सहकर भी रोज हँसी। फूँक-फूँक कर चूल्हे को, आँखें अविरल बहती हैं, लेकिन मेरी माँ हाथों से चक्की, पीस के भी हर्षाती हैं।