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जीवन झोंका चूल्हे में, चक्की के पाटों बीच फँ


जीवन झोंका चूल्हे में,
     चक्की के पाटों बीच फँसी,
सामंजस्य माँ का देखो,
     मुश्किल सहकर भी रोज हँसी।

फूँक-फूँक कर चूल्हे को,
        आँखें अविरल बहती हैं,
लेकिन मेरी माँ हाथों से चक्की,
           पीस  के भी हर्षाती हैं।

जीवन झोंका चूल्हे में,
     चक्की के पाटों बीच फँसी,
सामंजस्य माँ का देखो,
     मुश्किल सहकर भी रोज हँसी।

फूँक-फूँक कर चूल्हे को,
        आँखें अविरल बहती हैं,
लेकिन मेरी माँ हाथों से चक्की,
           पीस  के भी हर्षाती हैं।