जनहित की रामायण - 74 ख़बरों की सीरत सही नहीं, ख़बरों की नीयत सही नहीं ! जन-लोकपाल का था हो हल्ला, जन-लोकपाल चर्चा में ही नहीं !! अन्ना बाबा ने जनहित ज्योत जलाई, इनकी हर बात ख़बरों में खूब छायी ! आज वो ज्योत नजर ही नहीं आयी, प्रश्नकर्ता से हुज्जत की नौबत आयी !! गुमराही हुक्मरानों के खेल का है हिस्सा, सियासत में सब जायज, ये समझती जनता ! जनहित चिंतक चोला पहन जब कोई ठगता, जनता का भरोसा अपने आप से भी उठता !! ख़बरों में उन्माद की सुपारी झलक रही, ख़बरें में अब जनहित की ललक ही न रही ! बेशरमी का आलम इस कदर है पसरा, जनसाधारण में खबरों की इज़्ज़त ही न रही !! जनप्रश्नों में भरे भंडार पे भुखमरी, घटते रोज़गार बढ़ती बेरोज़गारी ! महँगी शिक्षा कमर तोड़ महंगाई, बढ़ते अपराध, न्याय व्यवस्था चरमराई !! कई गुना दामों पे मिलती दवाई, जुए की आदतें प्रचार में छायी ! अमीर गरीब की बढ़ती जाती खायी, सत्ता से प्रश्नों की सुविधा नज़र न आयी !! हे राम, हे कृष्ण ! कब मनेगा, जनहित जश्न !! - आवेश हिंदुस्तानी 01.06.2022 ©Ashok Mangal #JanhitKiRamayan #AaveshVaani #JanMannKiBaat #janhit