साहिल क्यां कहना चाहती है लहरें साहिल पे आके... क्यूँ ठहर जाता है गुनाह तू क़ातिल पे आके..। एक जिंदग़ी हमारी बरबाद की जिसके लिए... बहुत अफ़सोस हो रहां है अब हासिल पे आके..। ख़ब्तुल