Kunal तुम रसदार बन हर स्वाद रखना बाँध हर मोह तुम कल्प वृक्ष से पतझर भी रहना ये दुनिया भंग कर देगी तप तुम्हारी त्यागी न बन तुम इस कलयुग के साथ ज़रा खुदगर्ज भी रहना आयेंगे मौसम बारिशों के हजार छू कर कर जायेंगे ह्रदय गुलजार मगर तुम रहना मरुस्थल से भी ज़रा बूंदो के खत्म होते ना हो जाना तुम भी कोई बिसरा याद