मेरी एक बात वो मान क्यों नहीं लेती। अगर जान है मेरी तो फिर मेरी जान क्यों नहीं लेती।। अपनें हिस्से की जमीं मुझे देनें वाली। मेरे हिस्से का आसमान क्यों नहीं लेती।। दबा हूँ मैं एक अरसे से जिसके एहसानों तले। आखिर वो कभी मेरा एहसान क्यों नहीं लेती।। अपनीं खुशियों की दुनियाँ मुझपे लुटानें वाली। मेरे आमोद का जहान क्यों नहीं लेती।। मेरी एक बात वो मान क्यों नहीं लेती। अगर जान है मेरी तो फिर मेरी जान क्यों नहीं लेती।। ©Viswa Sachan #Love