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किस तरह घर से दूर बीत रही, हाल -ए जिंदगी घर नहीं


किस तरह घर से दूर बीत रही, हाल -ए जिंदगी घर नहीं बताता,
हंस देता हूं फोन पर , अपना दर्द नही बताता
सबको बहला देता हूं मैं बातों से अपनी 
लेकिन एक मां है जिससे कुछ छुप नहीं पाता
वक्त पर नहीं मिलती थी तो घर सिर पर था उठाता
अब दो वक्त का खाकर , दिन हूं अपना बिताता
सजा खूब दे रहा है वक्त,  वक्त बर्बाद करने की,
अब तो नीद में भी ख़्वाब, आवारगी का नहीं आता 
नासमझ "गोकुल" समझदार इतना हो गया
कि, रोता है पर आंसू नहीं बहाता ।
                                         Gokul raj......

©Gokul Kumar
  #merevicharmereshabd#