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कल जो उडती थी मुँह तक, आज पैरो से लिपट गई। चंद बूँ

कल जो उडती थी मुँह तक,
आज पैरो से लिपट गई।
चंद बूँद क्या बरसी बरसात की,
धूल की फितरत ही बदल गई

कल जो उडती थी मुँह तक, आज पैरो से लिपट गई। चंद बूँद क्या बरसी बरसात की, धूल की फितरत ही बदल गई

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