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(पंख जरा फैलाने दो) लोहे की जंजीरों से तोड़ पिंजरा

(पंख जरा फैलाने दो)
लोहे की जंजीरों से तोड़ पिंजरा आज चली हूंँ,
घूरती  नजरों से बच कर अपने पैरों पर आज खड़ी हूँ
कितने पंख है मेरे पास इन्हें , गिनने आज चली हूँ।
फैलू कुछ ऐसे की,            मेरे पंख न झड़  पाए
पहुंचु इतनी दूर शिखर मैं, कोई अब न छू पाए
अब बस मुझको बढ़ने दो पंख जरा फैलाने दो
(पंख जरा फैलाने दो)
लोहे की जंजीरों से तोड़ पिंजरा आज चली हूंँ,
घूरती  नजरों से बच कर अपने पैरों पर आज खड़ी हूँ
कितने पंख है मेरे पास इन्हें , गिनने आज चली हूँ।
फैलू कुछ ऐसे की,            मेरे पंख न झड़  पाए
पहुंचु इतनी दूर शिखर मैं, कोई अब न छू पाए
अब बस मुझको बढ़ने दो पंख जरा फैलाने दो
ominishad6636

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