कही आना भी नहीं है, कही जाना भी नहीं है अब मिलने मिलाने का जमाना भी नहीं है युँ तो तुम शामिल हों ख्वाबों में पर, अब तुम्हें हकीकत में पाना भी नहीं है उम्मीद तो सब रखते हैं दुनिया में पर, दिल दुखे ऐसी उम्मीद लगाना भी नहीं है ये अपने ही होते हैं साथ हर पल अब अपनों को पराया बनाना भी नहीं है जिंदगी तो हकीकत में जी जाती है कोई अधूरे ख्वाब सजाना भी नहीं है poem कही आना भी नहीं है, कही जाना भी नहीं है