ॐ नमः शिवाय उत्तुंग हिमालय के शिखर में, रहता वो अविनाशी है। जड़ चेतन विरल अविरल में, बसता घट घट वासी है।। जटा जूट धारी है जो, चंद्रमौली कहलाता है। गुणागार मृत्युंजय शिव, सबका भाग्य विधाता है।। तन में भश्म रमाए जो, हिम कैलाश निवासी है। उसकी असीम अनुकम्पा हो तो, किस्मत मेरी दासी है।। शीर्ष शिखा पे धारण जिसके, गंगा की निर्मल धारा है। प्रलय सृजन में तांडव करता, वो महादेव हमारा है।। नीलकंठ वो श्वेत वर्ण, पहने भुजंग की माला है। विघ्न विनाशक मंगलकारक, वो तो शंभू निराला है।। नंदी श्रृंगी गणों के ईश, धाम उनका काशी है। नमन है मेरे इष्ट देव को, जो औघड़ सन्यासी है।। रचित अविरल विपिन शिव स्तुति