ख़ुद से भी मोहब्बत करने लगा हूँ, जब से मैं तुम्हें चाहने लगा हूँ। आशिक़ी के नग़मे गुनगुनाने लगा हूँ, जब से मैं तुम्हें चाहने लगा हूँ। अदावत थी मुझे अब तलक ख़ुदा से, अब वक़्त बेवक़्त उसके आगे सर झुकाने लगा हूँ जब से मैं तुम्हें चाहने लगा हूँ। दुआ के लिए हाथ उठाने लगा हूँ, जब से मैं तुम्हें चाहने लगा हूँ। अंधेरे रास आने लगे थे मुझे, अब अंधेरों पर झुंझलाने लगा हूँ, जब से मैं तुम्हें चाहने लगा हूँ। दुनिया लौ से उठ गया था अक़ीदा मेरा, मैं फिर से घर के बाहर जाने लगा हूँ, जब से मैं तुम्हें.... ~हिलाल हथ'रवी . ©Hilal Hathravi जब से मैं तुम्हें चाहने लगा हूँ।