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बड़े ही मजे में गुजर रही है जिंदगी मेरी, कोई भी ग़

बड़े ही मजे में गुजर रही है जिंदगी मेरी,
कोई भी ग़म नजर नहीं आता।
मुझे आदत नहीं रहने की इस कदर,
बिछा दे तू ही ग़मों की चादर मेरे लिए।
मोहब्बत छोड़,
जरा बेवफ़ाई कर ले......

खामोशी भी अब मेरा पता मांगती हैं,
नहीं जानती वो मेरा ठिकाना।
मेरी गुमशुदगी की तू ही सुध देदे उन्हें,
गुजारिश तुझसे यही है कि......
आशिकी छोड़,
जरा बेवफ़ाई कर ले......

याद नहीं मैं कब रोया था, 
ग़मों की भीड़ में कब खोया था।
क्या तू भी किस्सा दोहरा सकती है,
तो जीने दे मुझे तन्हाइयों में, और सुन...
दिल्लगी छोड़,
जरा बेवफ़ाई कर ले.......

✍️धर्मेन्द्र सिंह (धर्मा)
बड़े ही मजे में गुजर रही है जिंदगी मेरी,
कोई भी ग़म नजर नहीं आता।
मुझे आदत नहीं रहने की इस कदर,
बिछा दे तू ही ग़मों की चादर मेरे लिए।
मोहब्बत छोड़,
जरा बेवफ़ाई कर ले......

खामोशी भी अब मेरा पता मांगती हैं,
नहीं जानती वो मेरा ठिकाना।
मेरी गुमशुदगी की तू ही सुध देदे उन्हें,
गुजारिश तुझसे यही है कि......
आशिकी छोड़,
जरा बेवफ़ाई कर ले......

याद नहीं मैं कब रोया था, 
ग़मों की भीड़ में कब खोया था।
क्या तू भी किस्सा दोहरा सकती है,
तो जीने दे मुझे तन्हाइयों में, और सुन...
दिल्लगी छोड़,
जरा बेवफ़ाई कर ले.......

✍️धर्मेन्द्र सिंह (धर्मा)