"उन्मुक्तता" (शेष अनुशीर्षक में) ~© Anjali Rai कितनी छोटी सी है ना जिंदगी ; घिरे हुए हैं हम सब अपनी व्यस्तताओं से अपनी जिम्मेदारियों से ; चिंताओं से किसी पास देने को समय नहीं न किसी और को न स्वयं को ; शायद इसलिए समय को सबसे कीमती अमूर्त धरोहर कहा गया है , आप कितनी भी कीमत लगा लें न समय खरीद सकते हैं और न रोक सकते हैं। समय के साथ चलना उतना ही जरूरी है; जितना सांस लेना बस अंतर इतना है की एक क्रिया अपनी इच्छा से चलती है और एक अपनी इच्छा अनुसार हमें चलाती है। व्यक्तिगत रूप से मेरी भावनाओं पर सदा समय ने विजय प्राप्त की है, शायद ऐसा। मेरे साथ ही नहीं सबके साथ होता होगा प्रकृति से उपमाएं उधार लेते लेते ये भी सीख लिया है सब कुछ उन्मुक्त करना है सब कुछ ।। कैद करने के लिए चौखट के बाहर पैर रखते तमाम रेखाएं खींची मिलेंगी पर संतुलन के लिए आंतरिक , मानसिक उन्मुक्तता आवश्यक है। एक उनमुक्त मन के लिए ये सारा आकाश उसका छत है और ये ज़मीं उसका घर ।