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तुम्हें पता है! वक़्त से पीछे कहीँ किसी मोड़ पर तुम्

तुम्हें पता है!
वक़्त से पीछे कहीँ किसी मोड़ पर
तुम्हारी लहराती हुई जुल्फों में
वो हवाएं अब भी गुम है

गुम है तुम्हारे कानो की बालियाँ
और हाथों से लटकता हुआ वो छल्ला
जिससे लटकता रहता था एक छोटा सा दिल

कुछ ऐसे ही लटकती रहती है आजकल यादें
हर शाम वक़्त की साख पर

रास्ता मंज़िल फुरकत एहसास सब एक से हो जाते हैं
वक़्त गुज़र जाता है करवटें लेते हुए
पेशानी पर कुछ सिलवटों के निशान छोड़कर

जो ना मिटता ना गुज़रता है
वो यादेँ हैं
वक़्त से कहीँ पीछे किसी साख से लटके हुए
किसी राह में ठिठके हुए किसी मोड़ पर ठहरे हुए

- क्रांति #कानों की बालियां
तुम्हें पता है!
वक़्त से पीछे कहीँ किसी मोड़ पर
तुम्हारी लहराती हुई जुल्फों में
वो हवाएं अब भी गुम है

गुम है तुम्हारे कानो की बालियाँ
और हाथों से लटकता हुआ वो छल्ला
जिससे लटकता रहता था एक छोटा सा दिल

कुछ ऐसे ही लटकती रहती है आजकल यादें
हर शाम वक़्त की साख पर

रास्ता मंज़िल फुरकत एहसास सब एक से हो जाते हैं
वक़्त गुज़र जाता है करवटें लेते हुए
पेशानी पर कुछ सिलवटों के निशान छोड़कर

जो ना मिटता ना गुज़रता है
वो यादेँ हैं
वक़्त से कहीँ पीछे किसी साख से लटके हुए
किसी राह में ठिठके हुए किसी मोड़ पर ठहरे हुए

- क्रांति #कानों की बालियां

#कानों की बालियां #कविता