डमरू बाजे डम डम डम, शंकर मन में भये मगन, भूल स्वयंको सृष्टि विधाता, ताल पे पैर मिलाये छम -छम।। उठत सुरों में छू लें नभ को, बैठत सुर में धरा छुवें, नटवर! बने आज त्रिपुरारी, हर्षित डोलें लोक, भुवन।। नृत्य करे संग, आदि भवानी, नयनाभिराम, मंगलकारी, आदिशक्ति-शिव युगल दिव्य छवि, रहे निहार अपलक नयन।। शीश त्रिपथगा और तारापति, कंठ भुजंगा, दीप्त त्रिशूला, पर्वतराज हिमालय गर्वित, नन्दी, केशी, गण हैं प्रसन्न।। नृत्य करे नभ, धरती ठुमके, नृत्यांगना भया ब्रहमाण्ड, नाचे पायल तोड़ आत्मशिव, भावविभोर काल! है थम।। ©Tara Chandra Kandpal #शंकरजी