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आगे बढ़ता गया इंसान, कितनों को कुचलता गया, बनाई बड

आगे बढ़ता गया इंसान,
कितनों को कुचलता गया,
बनाई बड़ी इमारत,
गांव को भूलता गया,
पेड़ो को काट के,
घोसलो को उड़ाता गया,
बनी कई फेक्ट्रिया,
धुआं निकलता गया,
सांस लेने की फुरसत नहीं,
सांसों में धुआं भरता गया,
पहोच गया चांद तक,
किसी के दिल में ना पहुंच पाया,
जितना तू ऊपर गया,
उतना ही जमी में धस्ता गया,
गांव में चिड़िया का चहकना,
शहर की भीड़ में दबता गया,
वाह रे इंसान, तू कितनों को कुचलता गया...
part (1)

©Mahendrasinh(Mahi) वाह रे इंसान.....
insta - @mahishayar226
#mahi #mahishayar#kavita

#safarnama
आगे बढ़ता गया इंसान,
कितनों को कुचलता गया,
बनाई बड़ी इमारत,
गांव को भूलता गया,
पेड़ो को काट के,
घोसलो को उड़ाता गया,
बनी कई फेक्ट्रिया,
धुआं निकलता गया,
सांस लेने की फुरसत नहीं,
सांसों में धुआं भरता गया,
पहोच गया चांद तक,
किसी के दिल में ना पहुंच पाया,
जितना तू ऊपर गया,
उतना ही जमी में धस्ता गया,
गांव में चिड़िया का चहकना,
शहर की भीड़ में दबता गया,
वाह रे इंसान, तू कितनों को कुचलता गया...
part (1)

©Mahendrasinh(Mahi) वाह रे इंसान.....
insta - @mahishayar226
#mahi #mahishayar#kavita

#safarnama