घूंघट में चाँद बादल को घूँघट बनाके चाँद छुप गया... सूरज की रोशनी मॆं फिर अंधेरा लूट गया..। जैसे जैसे रात बढ़ती गयी... एक-एक जुगनू ज़ाहिर हो गया..। मैंनॆ दर्द निकाला तो... हर एक शख़्स शाइर हो गया..। सिर छुपाने के चक्कर मॆं ... पैर खुलॆ रह गये..। भूक अनशन पर थी तो... ख़ामख़ा जलतॆ चूल्हॆं रह गये..। पलको की आड़ मॆं... आँख का काम जारी था..। हमसे कहकहा न संभला ... और अश्क़ भी भारी था..। घूँघट