कान्हा की बाँसुरी की धुन बिन कानों के ही सुन। मेरे कन्हैया की बातें बिन रसना ही वाचें। देख मे गोपाल की छवि दीख पड़ती बिन आँखें। चल मेरे कृष्णा के धाम बिन हाथ बिन पाँव। इन्द्रियातीत मेरा मुरारी देह बंधन से करे न्यारी। मैंने मन से चुन लिया प्यारे अब तू भी चुन। कान्हा की बाँसुरी की धुन बिन कानों के ही सुन। बी डी शर्मा चण्डीगढ़ इन्द्रियातीत #paidstory