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शहर दर शहर बदल रहा मिटे न मन की पीर चार दिन की स



शहर दर शहर बदल रहा
मिटे न मन की पीर
चार दिन की सब चाँदनी
मैं भटका हुआ समीर

ये दुनिया मुझको खींच रही
जैसे विष को खींचे बेल
रोम-रोम नीला हुआ
कहाँ ख़त्म हुआ ये खेल

वो यहाँ-वहाँ से देख रहा
देखे बनके तमाशगीर
टूटे टुकड़े फिर कहाँ जुड़े
जाहे मन हो या तस्वीर...
©abhishek trehan









 मेरा मनवा बेपरवाह,
जिसमें बस तेरी इक चाह।
#मनवाबेपरवाह #collab #yqdidi  #YourQuoteAndMine #manawoawaratha
Collaborating with YourQuote Didi


शहर दर शहर बदल रहा
मिटे न मन की पीर
चार दिन की सब चाँदनी
मैं भटका हुआ समीर

ये दुनिया मुझको खींच रही
जैसे विष को खींचे बेल
रोम-रोम नीला हुआ
कहाँ ख़त्म हुआ ये खेल

वो यहाँ-वहाँ से देख रहा
देखे बनके तमाशगीर
टूटे टुकड़े फिर कहाँ जुड़े
जाहे मन हो या तस्वीर...
©abhishek trehan









 मेरा मनवा बेपरवाह,
जिसमें बस तेरी इक चाह।
#मनवाबेपरवाह #collab #yqdidi  #YourQuoteAndMine #manawoawaratha
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मेरा मनवा बेपरवाह, जिसमें बस तेरी इक चाह। #मनवाबेपरवाह #Collab #yqdidi #YourQuoteAndMine #manawoawaratha Collaborating with YourQuote Didi