राम को जब वनवास मिला था तब सबके कलेजों पर आरियां चल गई थी किन्तु आज राज्याभिषेक की पावन बेला में राम का जो स्वरूप निखर कर और तप कर आया वह चौदह वर्षों के दुष्कर वनवासी जीवन की सुखद परिणति थी अन्यथा राम भी एक साधारण राजा बन कर रह जाते जैसे सैंकड़ों राजा आए व गए! तभी तो कहते हैं कि "जो भी होता है अच्छा होता है!" इन शब्दों के बीच जो वक्त होता है उसमें व्यक्ति को कितना संघर्ष करना पड़ता है, वाकई व्यक्ति जब उन संघर्षों की ज्वाला में तपकर उज्ज्वल होता है तभी वह भी असीम सुख पाता है और संसार को भी देता है! रामानंद सागर जी ने आज राम - दरबार को,राज्याभिषेक को साकार कर दिया, अरुण गोविल जी ने साक्षात राम को साकार कर दिया! हम उन क्षणों में सचमुच अयोध्या में, राम युग में ही पहुँच गए! सागर साहब ने कितना कठिनतम और सुंदरतम कार्य किया, उसकोअभिव्यक्त करने में शब्द ही समर्थ नहीं है बस अद्भुत अद्भुत और अद्भुत!! #राम और रामायण 19.04.20