आज ज़िम्मेदारियों से छुट्टी लेके सोचा के, एक ज़िम्मेदारी निभा ले ज़रा। के कुछ तो महकता है कमरे में हमारे तुम्हारी ख़ुशबू से भरा। आग़ाज़ किया अलमारी से और तलाश ए इत्र रही जारी। एक मफलर, दो जोड़ी जुराबे और कुछ तस्वीरें मिली तुम्हारी। नज़र भर के देखे दो लम्हे उन्हें, फिर आग़ के हवाले कर दी सारी। फिर भी ख़ुशबू का सिलसिला थमा नही, वो किनारे रखा संदूक नज़रो को हमारी जमा नही तोड़े ताले और मिली तुम्हारी महक से सनी वो कश्मीर की दो शालें। कुछ अश्क़ बहाये और कर दिए वो भी आग़ के हवाले। या ख़ुदा महक अब और भी संगीन थी, जला डाली वो चादरें तमाम जो तुम्हारी यादो से रंगीन थी। खुरच दिए रंग दीवारों के जो तुम्हारे पसंद के रंगों से रंगाए थे। ज़ार ज़ार कर दी वो मालाएं, जो होली, दीवाली त्योहारों में तुमने दरवाज़ो पे टंगायें थे। जब कुछ ना बचा होने को ख़ाक मायूस होके किये खुद से सवाल के महक जो ढूंढा किये ज़माने भर में, वो ख़ुशबू तो साँसों से आ रही थी। बस इतनी सी है कहानी हमारी के सारा घर जल गया, मग़र महक ना गई तुम्हारी। ©नज़रत #kavishala #kavita #lovepoetry #Instagram #Nojoto #BoneFire