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वो बाग़ ही उजड़ गया, शर्मोशार् भी हम हुए लेकिन मौ

वो बाग़ ही उजड़ गया, 
शर्मोशार् भी हम हुए
लेकिन मौसमों से आज़ भी, 
हमको कोई गिला नहीं

 वो बाग़ ही उजड़ गया, 
शर्मोशार् भी हम हुए
लेकिन मौसमों से आज़ भी, 
हमको कोई गिला नहीं

शिकायतें हज़ार थीं,
उस मौसम-ए-बहार से
सिवाय पत्थरों के रास्तों में,
वो बाग़ ही उजड़ गया, 
शर्मोशार् भी हम हुए
लेकिन मौसमों से आज़ भी, 
हमको कोई गिला नहीं

 वो बाग़ ही उजड़ गया, 
शर्मोशार् भी हम हुए
लेकिन मौसमों से आज़ भी, 
हमको कोई गिला नहीं

शिकायतें हज़ार थीं,
उस मौसम-ए-बहार से
सिवाय पत्थरों के रास्तों में,