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चन्द्रमा आँचल से बादलो की झांकता कभी शीतल छटा बिख

चन्द्रमा

आँचल से बादलो की झांकता कभी
शीतल छटा बिखेरता धरा पे कभी

कलायें नित नई नई सी जिसकी
निशा भी है सखी सी उसकी

अंधियारे में राह राहगीर की 
छुप सा जाता रोशनी में दिनकर की

तारो बीच रहता हरदम अकेला सा
चांदनी का जैसे कोई साया सा

प्यारा दुलारा वो हर का शिशु का
कुछ और नही नाम चन्द्रमा उसका
चन्द्रमा

आँचल से बादलो की झांकता कभी
शीतल छटा बिखेरता धरा पे कभी

कलायें नित नई नई सी जिसकी
निशा भी है सखी सी उसकी

अंधियारे में राह राहगीर की 
छुप सा जाता रोशनी में दिनकर की

तारो बीच रहता हरदम अकेला सा
चांदनी का जैसे कोई साया सा

प्यारा दुलारा वो हर का शिशु का
कुछ और नही नाम चन्द्रमा उसका
mannjoshi8656

Mann Joshi

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