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उस छाये की और बढ़ते चले गए जहाँ न छाया मिला न छाये

उस छाये की और बढ़ते चले गए
जहाँ न छाया मिला न छाये की आस
बस रेगिस्तान में जैसे किसी
बादल ने छला हो।
उस छाये की और बढ़ते चले गए
जहाँ न छाया मिला न छाये की आस
बस रेगिस्तान में जैसे किसी
बादल ने छला हो।