अखबारों में अब सिर्फ इश्तहार देखा जाए मैं कहता हूं की क्यों अखबार देखा जाए।। बम ,चाकू ,गोला क्या है, क्या लाओगे तुम जरा स्याही काफी है, बस अखबार देखा जाए।। खून से सनी है सब सुर्खियां इन पन्नो की सब जिस्म में जान थोड़ी है कौन है कातिल इसका कौन है गुनेहगार इसका चलो अखबार देखा जाए।। हमीं को कातिल कहेगी दुनिया हमारा ही कत्लेआम होगा मैं दिखूंगा जरूर तुम्हे किसी कोने में एक गुनेहगार की तरह बस जरा अखबार देखा जाए।। कौन कहता है पन्ने भी वही, घटना भी वही बस तारीख बदलती है मैं कहता हूं सब बदलता है लाश भी और कातिल भी बस अखबार देखा जाए।। सिफारिश केवल तुमसे एक ही हैं करते अखबारों में सिर्फ इश्तहार देखा जाए में कहता हूं क्यों अखबार देखा जाए। ©Gyan Prakash Yadav #Chhuan अखबारों में सिर्फ इश्तहार देखा जाए