शहर और गांव की खाईयां पाट रहे हैं हां हम रोज पेड़ काट रहे हैं शहर की हवा कुछ यूं शहरी हो गई है जैसे जिंदगी जहन्नुम में काट रहे हैं मिट्टी नदियां जंगल कहां है यहां ये कैसा विकास बांट रहे हैं दामन पर दाग दिखाई नहीं देता लेकिन हम खुद को ही लूट - पाट रहे हैं जहन में जहर भरा है कुछ ऐसा हवाओं में भी जहर बांट रहे है एक बार में प्रकृति लेगी बदला हम जो रोज थोड़ा थोड़ा इसे मारकाट रहे है #poeticPandey #MeraShehar *****