दिनोंदिन उमर अब ढलती हुई। छूट गए कुछ स्वपन अधूरे,और कितना भागूँ, मुकम्मल कुछ हुआ नही,रातों को और कितना जागूँ, मशाल पकड़ कर उजाला और कितना फैलाऊं, दूसरों के लिए हाथ अपने और कब तक जलाऊँ, जिंदगी दिनोदिन घट रही मोम सी पिघलती हुई, कोई रेल जैसे जीवन की अब स्टेशन से छूटती हुई।। समय की रेत फिसलती हुई, ये मेरी उम्र ढलती हुई। #समयकीरेत #collab #yqdidi #YourQuoteAndMine Collaborating with YourQuote Didi