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#OpenPoetry उस गली में एक मकान था पुराना.. बार्जे

#OpenPoetry उस गली में एक मकान था पुराना..
बार्जे को रजनीगंधा के फूलों ने ढंक रखा है..
चौबारे पर कबूतरों ने डेरा बना लिया है..
ना जाने कितने सालों से यूंही खड़ा है..
जैसे कि बाहर की दुनिया से उसका कोई नाता नहीं...
क्या दिन हुआ करते थे वो भी...
जब सर्दियों में छत पे...
मखमली धूप खिला करती थी..
जब बारिश के छींटे..
रोशनदान से झांका करते थे..
आज उन्हीं खिड़कियों को मकड़ी के जालों ने घेर लिया है..
जिनसे कभी हवाएं इतरा कर गुज़रा करतीं थीं..
लोग आए...लोग गए ..
वो यूंही सबको अपना समझकर निहारता रहा..
वक़्त ने उसका हुलिया ज़रूर बदल दिया..
पर मजाल है कि कोई मिजाज़ बदल सका हो..
वो आज भी वहीं खड़ा रास्तों पर नज़र रखता है..
कि शायद कोई उस पुराने मकान को फिर से घर बना ले .. #OpenPoetry #घर #zuri
#OpenPoetry उस गली में एक मकान था पुराना..
बार्जे को रजनीगंधा के फूलों ने ढंक रखा है..
चौबारे पर कबूतरों ने डेरा बना लिया है..
ना जाने कितने सालों से यूंही खड़ा है..
जैसे कि बाहर की दुनिया से उसका कोई नाता नहीं...
क्या दिन हुआ करते थे वो भी...
जब सर्दियों में छत पे...
मखमली धूप खिला करती थी..
जब बारिश के छींटे..
रोशनदान से झांका करते थे..
आज उन्हीं खिड़कियों को मकड़ी के जालों ने घेर लिया है..
जिनसे कभी हवाएं इतरा कर गुज़रा करतीं थीं..
लोग आए...लोग गए ..
वो यूंही सबको अपना समझकर निहारता रहा..
वक़्त ने उसका हुलिया ज़रूर बदल दिया..
पर मजाल है कि कोई मिजाज़ बदल सका हो..
वो आज भी वहीं खड़ा रास्तों पर नज़र रखता है..
कि शायद कोई उस पुराने मकान को फिर से घर बना ले .. #OpenPoetry #घर #zuri