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जिंदगानीयों के बीच मय्यत का ये शोर कैसा है? देखो,

जिंदगानीयों के बीच मय्यत का ये शोर कैसा है?
देखो, हारा है इंसान और जीत गया पैसा है।



(शेष अनुशीर्षक में पढ़ें) कम से कम इस महामारी में तो यही मिला देखने को।कितने बुरे वक़्त से गुज़र रही है हमारी धरा, ऐसा दौर आया है जहां कल के जीवन के बारे में कुछ कहा नहीं जा सकता है, पर फिर भी इंसानों का पैसो के प्रति मोह देखकर अचंभित हूं मैं। कोरोना की दूसरी लहर में तो यही देखने को मिला। इंसानियत तो जैसे खो ही गई है।

एक तरफ जहां मरीजों को अस्पतालों में बेड नहीं मिल पा रहें थें, ऑक्सीजन गैस सिलेंडरों की कमी हो रही थी, दवाइयां नहीं मिल पा रहीं थी वक़्त पर, वहीं दूसरी तरफ धड़ल्ले से इनकी कालाबाजारी भी हुई। कालाबाजारी करने वालों ने खूब जम कर पैसे भी कमाए। आपको अस्पताल में बेड चाहिए, चाहे गैस सिलेंडर, या फिर कोरॉना की कोई आवश्यक दवाई, या फिर एम्बुलेंस ही क्यों ना, आपको मिल तो जाएगी, पर भारी रकम चुकानी पड़ेगी आपको इसके लिए।

इन्हीं चीजों के अभाव की वजह से ना जाने कितने ही लोगो ने अपने परिवारजन और प्रियजनों को सदा के लिए खो दिया। मध्य वर्ग ने अपना बचा कुचा धन लगा दिया, जेवर और ज़मीन गिरवी रख दी तो गरीबों के पास दम तोड़ने के सिवा कोई चारा ही ना रहा। बहुत से पैसे वाले भी ऐसे रहें जिन्हें बेड ना मिलने के कारण जान से हाथ धोना पड़ा। 

कोरोंना की इस दूसरी लहर में शायद ही कोई इससे अछूता रहा होगा।
चारों ओर सिर्फ रोना बिलखना, चीख पुकार, ये ही सब देखने सुनने को मिला, श्मशानों, कब्रस्तानो में जगह कम पड़ गई, कितनों को तो दाहसंस्कार तक मयस्सर ना हुआ।
जिंदगानीयों के बीच मय्यत का ये शोर कैसा है?
देखो, हारा है इंसान और जीत गया पैसा है।



(शेष अनुशीर्षक में पढ़ें) कम से कम इस महामारी में तो यही मिला देखने को।कितने बुरे वक़्त से गुज़र रही है हमारी धरा, ऐसा दौर आया है जहां कल के जीवन के बारे में कुछ कहा नहीं जा सकता है, पर फिर भी इंसानों का पैसो के प्रति मोह देखकर अचंभित हूं मैं। कोरोना की दूसरी लहर में तो यही देखने को मिला। इंसानियत तो जैसे खो ही गई है।

एक तरफ जहां मरीजों को अस्पतालों में बेड नहीं मिल पा रहें थें, ऑक्सीजन गैस सिलेंडरों की कमी हो रही थी, दवाइयां नहीं मिल पा रहीं थी वक़्त पर, वहीं दूसरी तरफ धड़ल्ले से इनकी कालाबाजारी भी हुई। कालाबाजारी करने वालों ने खूब जम कर पैसे भी कमाए। आपको अस्पताल में बेड चाहिए, चाहे गैस सिलेंडर, या फिर कोरॉना की कोई आवश्यक दवाई, या फिर एम्बुलेंस ही क्यों ना, आपको मिल तो जाएगी, पर भारी रकम चुकानी पड़ेगी आपको इसके लिए।

इन्हीं चीजों के अभाव की वजह से ना जाने कितने ही लोगो ने अपने परिवारजन और प्रियजनों को सदा के लिए खो दिया। मध्य वर्ग ने अपना बचा कुचा धन लगा दिया, जेवर और ज़मीन गिरवी रख दी तो गरीबों के पास दम तोड़ने के सिवा कोई चारा ही ना रहा। बहुत से पैसे वाले भी ऐसे रहें जिन्हें बेड ना मिलने के कारण जान से हाथ धोना पड़ा। 

कोरोंना की इस दूसरी लहर में शायद ही कोई इससे अछूता रहा होगा।
चारों ओर सिर्फ रोना बिलखना, चीख पुकार, ये ही सब देखने सुनने को मिला, श्मशानों, कब्रस्तानो में जगह कम पड़ गई, कितनों को तो दाहसंस्कार तक मयस्सर ना हुआ।
nazarbiswas3269

Nazar Biswas

New Creator

कम से कम इस महामारी में तो यही मिला देखने को।कितने बुरे वक़्त से गुज़र रही है हमारी धरा, ऐसा दौर आया है जहां कल के जीवन के बारे में कुछ कहा नहीं जा सकता है, पर फिर भी इंसानों का पैसो के प्रति मोह देखकर अचंभित हूं मैं। कोरोना की दूसरी लहर में तो यही देखने को मिला। इंसानियत तो जैसे खो ही गई है। एक तरफ जहां मरीजों को अस्पतालों में बेड नहीं मिल पा रहें थें, ऑक्सीजन गैस सिलेंडरों की कमी हो रही थी, दवाइयां नहीं मिल पा रहीं थी वक़्त पर, वहीं दूसरी तरफ धड़ल्ले से इनकी कालाबाजारी भी हुई। कालाबाजारी करने वालों ने खूब जम कर पैसे भी कमाए। आपको अस्पताल में बेड चाहिए, चाहे गैस सिलेंडर, या फिर कोरॉना की कोई आवश्यक दवाई, या फिर एम्बुलेंस ही क्यों ना, आपको मिल तो जाएगी, पर भारी रकम चुकानी पड़ेगी आपको इसके लिए। इन्हीं चीजों के अभाव की वजह से ना जाने कितने ही लोगो ने अपने परिवारजन और प्रियजनों को सदा के लिए खो दिया। मध्य वर्ग ने अपना बचा कुचा धन लगा दिया, जेवर और ज़मीन गिरवी रख दी तो गरीबों के पास दम तोड़ने के सिवा कोई चारा ही ना रहा। बहुत से पैसे वाले भी ऐसे रहें जिन्हें बेड ना मिलने के कारण जान से हाथ धोना पड़ा। कोरोंना की इस दूसरी लहर में शायद ही कोई इससे अछूता रहा होगा। चारों ओर सिर्फ रोना बिलखना, चीख पुकार, ये ही सब देखने सुनने को मिला, श्मशानों, कब्रस्तानो में जगह कम पड़ गई, कितनों को तो दाहसंस्कार तक मयस्सर ना हुआ। #Death #peace #Hindi #yqbaba #yqdidi #suffering #coronavirus #nazarbiswas