"प्यार" किया नहीं जाता "प्यार" तो हो जाता है!! फिर सुबह! दुपहरी! शाम! क्या "रात" भी "दिन" बन जाता है!! "वक़्त" की परवाह नहीं हर "वक़्त" रहता है!! आँखों में "चेहरा" उसका जिसे यह दिल "चाहता" है!! हो जाता है अनमोल "कंचन" की तरह फिर "गुफ़्तुगू" में हर "लम्हां" गुजरता है!! ©Deepak Bisht #कंचन-है-प्यार-ए-वक़्त