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वजूद खतरे म्ह, सांस क्यूँकर आवै। नासमझी म्ह जड़ काट

वजूद खतरे म्ह,
सांस क्यूँकर आवै।
नासमझी म्ह जड़ काट दी,
फल- फूल पनप नहीं पावै।।
बीज कित सै,
कलम कित सै,
पयोध कित सै,
पेड़ कित सै,
पत्ते कित सैं,
ढाले कित सैं,
पँछी बेघर,
वो तोता, चिड़िया, गुरसल का आहलना,
मोख, आळे: कित सैं।
वा गहरी कैर, कीकर, नीम, शहतूत की 
गहरी शीतल छांव कित सै,
वो बचपन कित सै,
वो गाँव कित सै।।

©MSW Sunil Saini CENA "छांव"
(मेरी परछाई)
#mswsunilsainicena 
#Hindi 

#evening
वजूद खतरे म्ह,
सांस क्यूँकर आवै।
नासमझी म्ह जड़ काट दी,
फल- फूल पनप नहीं पावै।।
बीज कित सै,
कलम कित सै,
पयोध कित सै,
पेड़ कित सै,
पत्ते कित सैं,
ढाले कित सैं,
पँछी बेघर,
वो तोता, चिड़िया, गुरसल का आहलना,
मोख, आळे: कित सैं।
वा गहरी कैर, कीकर, नीम, शहतूत की 
गहरी शीतल छांव कित सै,
वो बचपन कित सै,
वो गाँव कित सै।।

©MSW Sunil Saini CENA "छांव"
(मेरी परछाई)
#mswsunilsainicena 
#Hindi 

#evening

"छांव" (मेरी परछाई) #mswsunilsainicena #Hindi #evening #कविता