थोड़ी सी रौशनी काफ़ी है, ख़्वाब पलकों में झिलमिलाने के लिए ...! इक मुस्कान ही काफ़ी है , मरहम लगाने के लिए ...!! मुसलसल वक्त भी कहां थमता किसी के लिए ...! मयस्सर बस आज है , अदाकारियां निभाने के लिए ...!! माना ताबीर-ए-ख़्वाब में नहीं लिखी हैं चाहतें हमारी...! तो क्या कोशिश भी ना करूं, इन्हें कमाने के लिए...!! लफ़्ज़ों की तासीर बदल देती हैं यादें आपकी...! सुनो कभी ख़्वाबों में आ जाया करो ना, खिलखिलाने के लिए ...!! किस बात की नाराज़गी रखती हो ख़ुद ही से... कल नज़रे चुराते देखा इन नज़रों को आईने से ...!! मेरी धड़कनें पूछतीं हैं अक्सर खैरियत तुम्हारी अंजली...! जेब में इक मुस्कान रखा करो, जमाने के लिए ...!! नापाक हरकतें जारी हैं ,मजहबी फासले बढ़ाने को ... तुम किस्सा मोहब्बत का तैयार रखना, दोहराने के लिए ...!! तुम ख़ुदा हो क्या जो तय करो तक़दीर हमारी... मंजिलें खुद ढूंढ़ा करती हैं चिराग़ को ,रौशन हो जाने के लिए ...!!-Anjali Rai (शेरनी...❤️) मुसलसल- निरंतर/successive, chained मयस्सर - सुलभ / available ताबीर-ए-ख़्वाब- ख़्वाब का वर्णन / interpretation of dream #कारवां_ज़िन्दगी_का❤️ थोड़ी सी रौशनी काफ़ी है, ख़्वाब पलकों में झिलमिलाने के लिए ...! इक मुस्कान ही काफ़ी है , मरहम लगाने के लिए ...!!