मेरी नई रचना रक्स (नृत्य) भूल गया था दुनियादारी को, वक़्त किया जाया बहुत। बंध गए जब घुंगरू मजबूरी के फिर मैं था घबराया बहुत।। मुझे ना आता था रक्श करना, जिंदगी ने नाच नचाया बहुत।। मजबूरी में पड़ा सबके सामने थिरकना, अलबत्ता अंदर से था शरमाया बहुत।। कभी ना समझी कदरो कीमत पैसों की बशर्ते पैसा जिंदगी में कमाया बहुत। खरे को सदा धोखा उन्हीं लोगों ने दिया यारों, जिन पर था रुपया ,लुटाया बहुत।। ✍️ सुरेश खरे ©Suresh khare #रक्स