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क्या लेना है जगत से , अब लेना सोच व

क्या  लेना  है  जगत  से ,
          अब लेना  सोच विचारी ।।टेर।।

नश्वर  है  रचना  यह  सारी ,
          काल माया है इन करतारी ।
                   चेतन  जात  बहा री (1)
.
सूरत  है  स्वामी  की  धारा ,
          मन के संग बहती नौ द्वारा ।
                  चेतन  जात  बहा री (2)

न्यून  चेतन्य  जगत  में  पाता ,
           अपना चेतन लौट न आता ।
                  घाटे  का  व्यवहारी  (3)

जब  से  सुरत  जगत  में आई ,
           तन मन के संग गई बौराई ।
                 शब्द न मिला आहारी (4)

राधास्वामी द्याल ने दया विचारी ,
           सतगुरू जग में दिया पठा री ।
                 उन संग घट में आ री (5)

                  *राधास्वामी *              
.राधास्वामी प्रीति बानी 7-80 क्या लेना है जगत से !
क्या  लेना  है  जगत  से ,
          अब लेना  सोच विचारी ।।टेर।।

नश्वर  है  रचना  यह  सारी ,
          काल माया है इन करतारी ।
                   चेतन  जात  बहा री (1)
.
सूरत  है  स्वामी  की  धारा ,
          मन के संग बहती नौ द्वारा ।
                  चेतन  जात  बहा री (2)

न्यून  चेतन्य  जगत  में  पाता ,
           अपना चेतन लौट न आता ।
                  घाटे  का  व्यवहारी  (3)

जब  से  सुरत  जगत  में आई ,
           तन मन के संग गई बौराई ।
                 शब्द न मिला आहारी (4)

राधास्वामी द्याल ने दया विचारी ,
           सतगुरू जग में दिया पठा री ।
                 उन संग घट में आ री (5)

                  *राधास्वामी *              
.राधास्वामी प्रीति बानी 7-80 क्या लेना है जगत से !
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क्या लेना है जगत से !