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दोस्त, मैं एक भटकता राही हूं, जिसे अपना रास्ता तक

दोस्त,
मैं एक भटकता राही हूं,
जिसे अपना रास्ता तक याद नाही।
और निकल पडा कम्बख़्त मैं ,
दूर इस दुनिया से काही।
                        दोस्त,
                        मैं एक उलझासा राही हूं,
                        जिसे आदत हो गयी है बेवजह चलने की।
                        और आस लगाए बैठा रहता हूं,
                        अपनी किसी को मंज़िल पाने की।
                        --@maharashtrian_kavi #OpenPoetry 
#hindipoetry
#life
#maharashtrian_kavi
दोस्त,
मैं एक भटकता राही हूं,
जिसे अपना रास्ता तक याद नाही।
और निकल पडा कम्बख़्त मैं ,
दूर इस दुनिया से काही।
                        दोस्त,
                        मैं एक उलझासा राही हूं,
                        जिसे आदत हो गयी है बेवजह चलने की।
                        और आस लगाए बैठा रहता हूं,
                        अपनी किसी को मंज़िल पाने की।
                        --@maharashtrian_kavi #OpenPoetry 
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