हम तो लिखेगे टूटती जिंदगी की दस्ता आदमी की जीने की अदमय लालसा को जब चारो तरफ से निरास बेचेन, आदमी थक गया तब अपने पुराने घर को लोटने लगा है मगर कब घर पहुुंचेगे? या रास्तों मे दम तोड़ देगे नही पता है जिंदगी का कब तक साथ देगी, मगर सफर पर चलने लगे हैं l कभी भूख से लड़ते l कभी सरकार पर बीफरते, कभी बच्चो की सुख के लिए लाईन मे लगते, ये कौन है ये मजदूर जो हमे छत बनाकर देते पर खुद छत के लिए तरसते हैं ©Madan Singh Sodha #Architecture ISHQPARAST