वादा करके वादा एक शक्श भुलाता रहा आंखे खुली रही और जाम मुस्कुराता रहा। तेरे ख्याल-ए-इंतज़ार में था कोई रात भर कभी शमा जलाता रहा कभी बुझाता रहा। कैसा है मासूम दिल कोई समझेगा नही जिसने भुला दिया उसका ही ख्याल आता रहा। जाड़े की एक सर्द भारी रात थी, वो पन्ने तेरे खत के रात भर जलाता रहा #वादा #राजू थापा #राज मस्ताना #ग़ज़ल