जीवन ओंस कणों जैसा ही सांझ हुई तो भानु छिप गये प्रातः हुई तो तारे जब चढ़ती धूप पड़े धरती पर सूखे ओंसकण बेचारे , जीवन उत्थान पतन की गति है नहीं स्थिर बलिष्ठ यौवन ही नहीं चिर सौन्दर्य अमिट है सब चले जन्म मृत्यु सहारे , चलती धुप लिए परछाई बनते मिटते , ढलते सब रंग उषा आगमन से दीप बुझ जाते सांसों की गति किरण निहारे ।। स्वरचित ©Usha Dravid Bhatt जीवन क्षण भंगुर है। #CalmingNature