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तिरी आँखों में मंजर देखता हूँ बदमाशियों का समुंदर

तिरी आँखों में मंजर देखता हूँ
बदमाशियों का समुंदर देखता हूँ

आख़िर क्यों जाऊँ मंदिर-मस्जिद मै 
ईश्वर अल्लाह जब तेरे अंदर देखता हूँ

कभी तो कोई राह मिले तुझ तक का
वस्ल के ख़्वाब जाना अक्सर देखता हूँ

मेरे लब से हया रुखसत हो जाती है 
कभी जब तेरे लब के तेवर देखता हूँ

जिसको भी मिलोगी जन्नत कर दोगी
तिरे चेहरे में इश्क ए अख्तर देखता हुँ 

तिरा इक दीद हि काफ़ी कत्ल के लिए
न जाने घंटों तुझको क्यूँकर देखता हुँ

©Author kunal #Love 
#poet 
#kunu 
#trust
#lust
#friend
#you
#viral
तिरी आँखों में मंजर देखता हूँ
बदमाशियों का समुंदर देखता हूँ

आख़िर क्यों जाऊँ मंदिर-मस्जिद मै 
ईश्वर अल्लाह जब तेरे अंदर देखता हूँ

कभी तो कोई राह मिले तुझ तक का
वस्ल के ख़्वाब जाना अक्सर देखता हूँ

मेरे लब से हया रुखसत हो जाती है 
कभी जब तेरे लब के तेवर देखता हूँ

जिसको भी मिलोगी जन्नत कर दोगी
तिरे चेहरे में इश्क ए अख्तर देखता हुँ 

तिरा इक दीद हि काफ़ी कत्ल के लिए
न जाने घंटों तुझको क्यूँकर देखता हुँ

©Author kunal #Love 
#poet 
#kunu 
#trust
#lust
#friend
#you
#viral
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Author kunal

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