भीड़ आगाज़ मेरा ना है और कोई अंज़ाम नहीं में भीड़ हूं मेरा कोई नाम नहीं। मुझसे कोई यूं बच जाए ये इतना तो आसान नहीं । कितने ही बेमौत मरे है मेरी एक आवाज़ पे मुझसे बच के निकल जाना कोई बच्चो का काम नहीं । मैने देखा है मरते कीतने ही लाचारो को छिपाके मुझमें रखते है ये पत्थर और तलवारों को। गैरत होती है मुझको तो अब अपने होने पे भी इन्कलाब की आवाज़ थी में सोप दिया मक्कारो को मुझको किसी से नहीं हमदर्दी और मेरा ईमान नहीं मुझसे ज्यादा इस देश में और कोई बदनाम नहीं । ye meri kuch waqt pehle ki ek choti si poetry hai jo sahi lage to share krna @akshat #mob #freedom #thoughts #anonymous